पूजन रामचंद्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ मैना मातु की ह्वै दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ स्वामी एक है आस तुम्हारी । आय हरहु अब संकट भारी ॥ महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।। https://shivchalisas.com